छत्तीसगढ़ में पाँच बदलाव - आम आदमी के जीवन में
चाह बदलो तो राह बदल जाती है’ छत्तीसगढ़ राज्य में चारों तरफ़ बदलते हालात की यही लहर नज़र आती है। पिछले साल जैसे ही पुरानी सरकार बदली, कर्ज़-माफ़ी के फ़ैसले के साथ नई सरकार ने परिवर्तन और कई नई जन-कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा दी। प्रजातंत्र की यही ख़ूबसूरती है जिसमें जनता अपने मत के प्रयोग से शासन और शासक दोनों को ही बदल देती है। आजकल यही बदलाव पूरे राज्य में भी देखने को मिल रहा है।
रजैसे ही छत्तीसगढ़ में नई सरकार सत्ता में आई, 2018 में किए गए जन-घोषणा के वायदे के मुताबिक़ उसी दिन अल्पकालीन कृषि-ऋण को माफ़ कर दिया। जिसमें राज्य के 16 लाख 65 हज़ार से ज्य़ादा किसानों पर 6,230 करोड़ से ज्य़ादा का ऋण था, माफ़ करने का निर्णय लिया गया।
कअब सवाल है कि किसानों की कृषि-ऋण माफ़ी, किसानों की अधिग्रहित भूमि वापसी, तेंदूपत्ता और वनोपज संग्रहण समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और नयी राज्य सरकार की दूसरी योजनाओं से छत्तीसगढ़ के जनजीवन पर कितना असर पड़ा है और पड़ने वाला है? हमने एक कोशिश की लोगों के जीवन में आने वाले बदलावों का एक अध्यन करने की।
- रायपुर ज़िले में तुलसी गाँव में लेखराम (बदला हुआ नाम) एक छोटे किसान हैं। उन्होंने हमें बताया कि शुरुआत में साहूकार से ब्याज़ पर पैसे लेकर बीज और खाद लिया करते थे। फसल कटने पर साहूकार के पैसे लौटा दिए जाते, लेकिन कुछ साल पहले फ़सल के बर्बाद होने पर साहूकार के पैसे लौटना मुश्किल हो गया क्योंकि ब्याज बहुत ज़्यादा था। तब किसी तरह कुछ बेचकर साहूकार से पीछा छुड़ाया और कृषि के लिए बैंक से ऋण लेना शुरु किया। बैंक का ब्याज कम था और चुकाना भी आसान था। पर पिछले कुछ समय से लगातार खराब मौसम के असर से फसल तो क्या जमा पूंजी और मेहनत भी बेकार हो गयी है। उन्होंने ये भी बताया कि अगली फसल की उम्मीद में क़र्ज़ का बोझ भी बढ़ता ही गया और तंगी भी बढ़ गयी। अब सवाल था कि फिर से बुवाई के लिए पैसे कहाँ से लाये। साहूकार के पास जा नहीं सकते और बैंक से पहले ही कर्ज़ ले रखा है। उनका कहना था कि यही परिस्थिति किसान को मरने-मारने पर विवश कर देती है।
मैंने पूछा “क़र्ज़ माफ़ी से क्या आपको लाभ मिला?” उन्होंने कहा “जी, मैं पिछले सात साल से बैंक का क़र्ज़ चुका नहीं पाया था, और शायद चुका भी नहीं पाता लेकिन अब खुद को क़र्ज़ से मुक्त महसूस कर रहा हूँ। उम्मीद है अब सब अच्छा होगा। - दूसरी ओर लोहंडीगुड़ा के एक ऐसे परिवार से मिलना हुआ जो कभी किसान था लेकिन अब मज़दूर बन चुका है। 2008 में बस्तर ज़िले में टाटा इस्पात संयंत्र के लिए (1764 हेक्टर से भी अधिक) भूमि अधिग्रहित की गई। पर कई साल बाद भी कंपनी का कोई कारखाना नहीं लगा। यहाँ के प्यारेलाल का कहना है कि भूमि अधिग्रहण के बाद हम किसान से भूमिहीन हो गए और परिस्थिति ने हमें मजदूर बना दिया। हालांकि कंपनी ने बरसों पहले ही कह दिया था कि वो अधिग्रहित ज़मीन पर संयंत्र नहीं लगाएगी, मगर पिछली सरकार ने ज़मीन किसानों को लौटाने का फ़ैसला लटकाए रखा। अब नई राज्य सरकार ने सभी 1707 किसानों की जमीन लौटा कर फिर से हमें किसान और भूमिहीन से मालिक बना दिया है।
- छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग बहुल राज्य है। जहां आज भी 75% आबादी कृषि और वन सम्पदा पर आधारित व्यवस्था पर जीवन-यापन कर रही है। पहले राज्य में धान का समर्थन मूल्य 1750 रूपये प्रति क्विंटल था। जिसे नयी सरकार ने बढ़ा कर 2500 रूपये प्रति क्विंटल कर दिया। इस पहल ने धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में किसानों को एक बड़ी राहत दी है। ये समर्थन मूल्य अब पूरे देश में सबसे ज़्यादा है।
जगदलपुर में हमें सागर (बदला हुआ नाम) मिले, जो किसान हैं, उन्होंने हमें धान की खेती के बारे में बताया. “पहले धान का समर्थन मूल्य लागत के आस-पास ही था अगर फसल अच्छी नहीं हुई तो किसान क़र्ज़ में ही दब जाता था लेकिन धान के नए समर्थन मूल्य से किसानों के लिए खुशहाली की उम्मीद जगी है। - इसके साथ ही तेंदूपत्ता संग्रहण समर्थन मूल्य पिछली सरकार में 2500 रूपये प्रति मानक बोरा था जिसे नई सरकार ने बढ़ाकर 4000 रूपये प्रति मानक बोरा कर दिया। सरकार का यह निर्णय आदिवासियों के लिए कितना कल्याणकारी है, इसी सन्दर्भ में हम कुछ परिवारों से मिले।
वहीं दांतेवाड़ा के शिबूराम (बदला हुआ नाम) का परिवार हमेशा से ही तेंदुपत्ता संग्रहण कार्य में जुटा रहा है। उनके मुताबिक तेंदुपत्ता संग्रहण का नया समर्थन मूल्य पिछली सरकार से डेढ़ गुणा ज़्यादा है। उनका कहना था कि इस बढ़े हुए पारिश्रमिक से वो और उनके जैसे और लोग बहुत खुश हैं। - दांतेवाड़ा के पास के गांव में रहने वाली चंदरमनी का कहना है कि, ‘यह बहुत अच्छा हुआ, जब घर में पैसा होता है तब महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ और जरूरतों पर पूरा ध्यान रखा जाता है’। वो गीदम में मौजूद स्वास्थ केंद्र से भी बहुत खुश हैं।