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अकेलापन, तन्हाई- वो एहसास जो आपको हजारों लोगों की भीड़ में भी महसूस हो सकता है और तब भी जब आपके आस-पास कोई मौजूद न हो.
इस अकेलेपन को कभी आर्दश स्थिति नहीं माना गया है. एक सामाजिक प्राणी होने के नाते इंसान लोगों के संपर्क में रहता है , सोशल कनेक्शन हमारे विकास और सर्वाइवल के लिए जरूरी है.
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की 125वीं वार्षिक सम्मेलन में एक रिसर्च में बताया गया कि अकेलापन और सामाजिक अलगाव मोटापे के मुकाबले ज्यादा बड़े हेल्थ रिस्क हो सकते हैं. इतना ही नहीं ब्रिटेन की सरकार ने ब्रिटेनवासियों को अकेलेपन से दूर रखने के लिए पिछले साल एक मंत्री नियुक्त किया है.
तो क्या अकेलापन हम पर इस कदर हावी हो सकता है? फिर खुद के साथ वक्त बिताने का क्या मतलब है?
अकेलेपन को जितना कोस लिया जाए, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इससे क्रिएटिविटी में सुधार होता है.
मैक्स हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर डॉ समीर मल्होत्रा बताते हैं कि जब इंसान अपने आप को थोड़ा सा अलग करके, बहुत ज्यादा शोर-गुल से हटकर कुछ सोचना शुरू करता है, तो फिर उसकी क्रिएटिविटी उभरती है, वो अपने विचारों को आकार दे सकता है.
साइकोलॉजी ऑफ क्रिएटिविटी पर शोध करने वाले कैलिफोर्निया के सैन जोस स्टेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर ग्रेगरी फेइस्ट के मुताबिक क्रिएटिव लोग अकेले रहना पसंद करते हैं, उन्हें एकांत की जरूरत होती है.
साइकोलॉजी टुडे के इस आर्टिकल के मुताबिक लेखिका वर्जीनिया वूल्फ ने अपनी डायरी में लिखा था कि अकेलेपन के एहसास ने उनकी रचनात्मकता और समझ पर काफी असर डाला.
डॉ मल्होत्रा मानते हैं कि मन के विचार को आकार देने के लिए कई बार अकेलेपन की जरूरत होती है.
प्राचीन काल से ही अलग रहने और मानसिक ध्यान के बीच संबंध को समझा गया है. ध्यान, तप और मानसिक शांति के लिए लोग एकांत में ही जाया करते रहे हैं.
जब आपके साथ कोई होता है, तो न चाहते हुए भी आपका ध्यान उसकी ओर जाता है. ये डिस्ट्रैक्शन पॉजिटिव भी हो सकता है, लेकिन इसका मतलब ये भी है कि किसी की मौजूदगी में आपका दिमाग डिस्ट्रैक्ट जरूर होता है.
कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप अकेले रहना नहीं चाहते, लेकिन भरी महफिल में आप अलग-थलग और उपेक्षित महसूस करते हैं. जाहिर है इस तरह के अकेलेपन का आप पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
वहीं जब तन्हाई आपकी अपनी च्वॉइस होती है, तो ये अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी, सिर्फ आपको फर्क करना पता होना चाहिए.
डॉ समीर मल्होत्रा बताते हैं कि अकेलापन तब तक सही हो सकता है जब तक:
डॉ मल्होत्रा के मुताबिक यहां तक आपका अकेलापन ठीक है, लेकिन ये तब हेल्दी नहीं है जब:
डॉ मल्होत्रा कहते हैं, 'अति किसी भी चीज की ठीक नहीं होती. जब हम दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग हो जाते हैं, तो कहीं न कहीं हमारा मन इससे प्रभावित होता है. ज्यादातर देखा गया है कि बहुत ज्यादा अकेलेपन से डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे लक्षण बढ़ते हैं, असुरक्षा बढ़ती है. कुछ बीमारियों में भी इंसान अकेलेपन की ओर बढ़ता है. उसका किसी के साथ उठने-बैठने का मन नहीं होता.'
खुद के साथ वक्त बिताना कतई गलत नहीं है. इसलिए अगर आप पार्टीज, शोर-गुल, भीड़-भाड़ से दूर होकर कुछ वक्त तन्हाई में बिताना चाहते हैं, तो ऐसा जरूर कीजिए.
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