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क्या कभी चेहरे पर शहद लगाया है? कहते हैं कि इससे स्किन सॉफ्ट होती है. खांसी आने पर कोई दवा लेने की बजाए हम में से कितने ही लोग शहद मिलाकर अदरक का रस लेना पसंद करते हैं. शहद जिसका इसका इस्तेमाल मीठे के तौर पर और इसके साथ ही तमाम घरेलू नुस्खों में किया जाता है.
चिकित्सा में शहद का प्रयोग सदियों से किया जा रहा है. शायद इसीलिए हम दादी-नानी के किसी न किसी नुस्खे में शहद के बारे में सुनते आए हैं.
लेकिन शहद को लेकर एक्सपर्ट और वैज्ञानिक अध्ययनों का क्या कहना है. रोजाना की डाइट में शहद का इस्तेमाल कितना हेल्दी है? क्या चीनी की जगह शहद लेना चाहिए? क्या शहद के कोई नुकसान भी हैं? जिनके बारे में हमने कभी विचार ही नहीं किया.
हम शहद को क्यों पसंद करते हैं? क्योंकि ये पूरी तरह से प्राकृतिक होता है (अगर मिलावट नहीं की गई हो).
मधुमक्खियां फूलों से रस लेकर उसे सिंपल शुगर में बदलती हैं और अपने छत्तों में इकट्ठा करती हैं. छत्ते की खास बनावट और लगातार मधुमक्खियों के पंख की हवा से छत्ते में रखे पदार्थ से एक्स्ट्रा पानी भाप बन जाता है और इस तरह स्वादिष्ट शहद तैयार होता है.
शहद का स्वाद, रंग और असर इस पर निर्भर करता है कि मधुमक्खियों ने पराग किन फूलों से इकट्ठा किया है, शहद किस मौसम में और कहां तैयार हुआ है.
क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट रुपाली दत्ता कहती हैं कि नैचुरल शहद इसलिए अच्छा होता है क्योंकि ये फ्रेश होता है और प्रोसेस्ड नहीं होता.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन शहद को डिमल्सन्ट बताता है, जो मुंह और गले की दिक्कतों में आराम देता है. कई स्टडीज में शहद के एंटीऑक्सिडेंट, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीकैंसर प्रभाव के बारे में बताया गया है.
शहद में कार्डियोवैस्कुलर रिस्क फैक्टर्स जैसे ब्लड ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल और वजन को रेगुलेट करने की क्षमता है.
शहद को आयुर्वेदिक चिकित्सा का आधार तक कहा गया है. शहद बेहद जल्दी पचने वाला होता है, हल्का होने की वजह से तुरंत पचकर रक्त में मिल जाता है और शरीर को ऊर्जा देता है.
आयुर्वेद में फेफड़े की बीमारियों, घाव-चोट, बीपी, नींद न आने की दिक्कत, सर्दी, खांसी, जुकाम, गैस, थकान-सुस्ती और भी कई बीमारियों में शहद को फायदेमंद बताया गया है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि शहद के तमाम फायदों के बीच हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि शहद का मतलब बहुत सारी कैलोरी भी है. शहद ‘फ्री शुगर’ है, जिसकी अधिकता फायदा नहीं करती.
WHO व्यस्कों के लिए एक हेल्दी डाइट प्लान में बताता है कि कुल एनर्जी इनटेक का 10 फीसदी ही फ्री शुगर से मिलना चाहिए.
शहद से इन्फेंट बोटुलिज्म (एक दुर्लभ लेकिन गंभीर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कंडीशन) का खतरा होता है. इसलिए एक साल तक के बच्चों को शहद देने से मना किया जाता है.
चीनी की तरह ही ज्यादा शहद लेने से ब्लड शुगर की दिक्कतें हो सकती हैं, जिससे वजन बढ़ने, डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.
इस बहस में हमेशा से शहद को ज्यादा अंक मिलते रहे हैं. हालांकि चीनी और शहद दोनों में ही ग्लूकोज और फ्रक्टोज शुगर होते हैं.
चीनी में 50 फीसदी फ्रक्टोज और 50 फीसदी ग्लूकोज होता है, जबकि शहद में 40 परसेंट फ्रक्टोज, 30 फीसदी ग्लूकोज और बाकी पानी, कुछ मिनरल्स, एंटीऑक्सिडेंट्स, विटामिन, एमीनो एसिड होते हैं, जो शहद को स्वास्थ्य के लिए चीनी के मुकाबले बेहतर बनाते हैं.
शहद की तुलना में ज्यादा फ्रक्टोज होने के नाते चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी ज्यादा होता है. इसका मतलब है कि चीनी ब्लड शुगर लेवल को तेजी से बढ़ाता है.
हालांकि शहद चीनी से ज्यादा मीठा भी होता है, ऐसे में इसकी मात्रा कम की जा सकती है.
रुपाली दत्ता कहती हैं कि अगर आप शहद के फायदे लेना चाहते हैं, तो किसी विश्वसनीय स्रोर्स से नैचुरल शहद लें, जिसकी प्रोसेसिंग न की गई हो. साथ ही कुल कैलोरी इनटेक का भी ध्यान रखना जरूरी है.
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